- दुःख की पिछली रजनी बीच, - Brainly
दुःख की पिछली रजनी बीच, विकसता सुख का नवल प्रभात; एक परदा यह झीना नील, छिपाए है जिसमें सुख गात। जिसे तुम समझे हो अभिशाप, जगत की ज्वालाओं का मूल जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखित ‘कामायनी’ कविता की पंक्तियों का भावार्थ इस प्रकार है।
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इस कविता को पढ़िए दुख की पिछली रजनी बीच विकसता सुख का नवल प्रभात; एक परदा यह झीना नील छिपाये लिए प्रश्न बनाइए। (घ) कविता को उचित शीर्षक दीजिए।
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दुःख की पिछली रजनी बीच पद्यांश का संदर्भ प्रसंग व्याख्या काव्य सौंदर्य और
- पृष्ठ:कामायनी. djvu २९ - विकिस्रोत
किंतु जीवन कितना निरुपाय! लिया है देख, नहीं संदेह, कहा आगंतुक ने सस्नेह-"अरे, तुम इतने हुए अधीर!
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(2) दुःख की पिछली रजनी बीत विकसता सुख का नवल प्रभात, एक परदा यह झीना नील Not the question you're searching for? Learn from their 1-to-1 discussion with Filo tutors Was this solution helpful? Demand deposits offer another made interesting facility
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दुख की पिछली रजनी बीच, विकसता सुख का नवल प्रभात एक परदा यह झीना नील, छिपाये है जिसमें सुखगात #कामायनी
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