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- आषाढ़ का एक दिन नाटक में कालिदास | हिन्दीकुंज,Hindi Website Literary . . .
"मैंने कहा था।मैं अथ से आरम्भ करना चाहता हूँ। यह संभवतः इच्छा का समय के साथ द्वन्द था। परन्तु देख रहा हूँ कि समय अधिक शक्तिशाली है "
- आषाढ़ का एक दिन : पात्र योजना और चरित्र-चित्रण | HindiVyakran
In this article, you will read character sketch and analysis of all main characters of Ashad ka Ek Din such as Kalidas, Mallika, Ambika, Matul and Vilom etc in Hindi
- आषाढ़ का एक दिन नाटक के आधार पर कालिदास का चरित्र-चित्रण कीजिए।
नाट्य लेखन के क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। वस्तुतः हिन्दी के जिन एक-दो लेखकों ने नाटकों में यथार्थपरकता और व्याख्यात्मकता का श्रीगणेश किया था, आषाढ़ का एक दिन उसकी महत्त्वपूर्ण परिणति है। इस नाटक की प्रत्यक्ष विषय-वस्तु कालिदास के जीवन से संबंधित है। सारी घटनाएँ आषाढ़ के एक दिन पर ही घटित होती हैं। प्रेयसी मल्लिका के आग्रह पर कालिदास
- आषाढ़ का एक दिन - विकिपीडिया
Ashadh ka ek din (Hindi), a well-known Hindi play by Mohan Rakesh was first published in 1958 The title of the play comes from the opening lines of the Sanskrit poet Kalidasa's long narrative poem
- आषाढ़ का एक दिन नाटक - मोहन राकेश
आषाढ़ का एक दिन (Ashadh Ka Ek Din) मोहन राकेश द्वारा रचित नाटक आषाढ़ का एक दिन की कथा अतीताश्रित है। उसका नायक कालिदास है। इस नाटक की रचना तीन अंकों में की गई है। इसके कथानक का आधार है-कालिदास और मल्लिका की कथा। नाटक के तीनों अंकों में यही कथा विन्यस्त है। विलोम मातुल, प्रियंगुमंजरी आदि कुछ प्रासंगिक कथासूत्र भी इस मुख्य कथा से आ जुड़ते हैं। ये
- मोहन राकेश आषाढ़ का एक दिन नाटक
मल्लिका : आषाढ़ का पहला दिन और ऐसी वर्षा, माँ ! ऐसी धारासार वर्षा ! दूर-दूर तक की उपत्यकाएँ भीग गईं। और मैं भी तो ! देखो न माँ, कैसी भीग गई हूँ ! सूखे वस्त्र कहाँ हैं माँ ? इस तरह खड़ी रही तो जुड़ा जाऊँगी। तुम बोलतीं क्यों नहीं ? मल्लिका : तुमने पहले से ही निकाल कर रख दिए ?
- NET JRF : आसाढ़ का एक दिन नाटक का सारांश व मुख्य संवाद | Summary and . . .
1971 में निर्देशक मणि कौल ने इस पर आधारित एक फिल्म बनाई, जिसे साल की सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला। आषाढ़ का एक दिन नाटक महाकवि कालिदास के निजी जीवन पर आधारित है। सत्ता और सर्जनात्मकता के बीच मनुष्य के अन्तर्द्वन्द और प्रेम की स्थिति का चित्रण इस नाटक में किया गया है।
- आषाढ़ का एक दिन, संपूर्ण अध्ययन, मोहन राकेश - Avinash Solutions
विदा तुम्हें नहीं दूँगी। जा रहे हो, इसलिए केवल प्रार्थना करूँगी कि तुम्हारा पथ प्रशस्त हो।” और कालिदास चला जाता है। इस मोड़ पर पहुँचकर कथानक के एक – आरंभिक भाग का अंत हो जाता है।
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